आज का विश्व अनेकों – अनेक गुरुजनो से भरा पड़ा है जो हर वक़्त ज्ञान- उपदेश और शिष्यों का मार्ग दर्शन करते हैं | इसी तरह कुछ तथाकथित लोग भी हैं जो गुरु होने का ढोंग करते हैं | आज के समय मे यह तय करना मुश्किल है कि कौन सही है और कौन गलत | जो लोग सही हाथों मे पहुँच जाते हैं वह अपना जीवन संवार लेते हैं और जो गलत हाथों में चले जाते हैं वो अपना समय और धन खराब कर बैठ जाते हैं | ऐसे में एक नए साधक के लिए गुरु चुनना बहुत मुश्किल है |
ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती मगर हर एक को अपना ज्ञान ही अंतिम बिन्दु लगता है जैसे कुंए के मेढक को कुआं ही संसार लगता है | उसने तालाब नहीं देखा और तालाब वाले का तालाब ही संसार है, उसने समुंदर नहीं देखा | हमारे यहाँ एक कहावत प्रचलित है “पानी पिये छान के गुरु करिए जान के “ मगर आज के माहौल में कुछ लोग गुरु अपने मन से नहीं बनाते, कारण वह दूसरों के कहने में आकर गुरु दीक्षा ले लेते हैं | जब कुछ हासिल नहीं होता तो गुरु को ही गलत कह देते हैं | एक फंसा होता है दूसरे को भी फंसा देते हैं | “हम लूट गए सनम अब आप भी आ जायों” | अगर इसी बात को धरातल पर देखें तो कितने लोग मिलते हैं जो दावे के साथ कह सके कि हाँ मैंने अपने गुरु जी के सानिध्य मे यह हासिल किया है | दोस्तों गुरु प्रदित विद्या कभी प्रदर्शन के लिए नहीं होती | मेरा मानना है विद्या वही जो दूसरे का जीवन संवार दे | जो आपको दूसरे पर आश्रित होने का मौका न दे, तभी किसी गुरु का दिया ज्ञान साकार है | इसलिए बहुत सोचने के बाद और अनेक ईमेल जो मिले जिनमे कई लोगों का एक ही प्रशन था कि गुरु किसे बनायें | कई नए साधकों की मनोदशा को ध्यान में रखते हुये यह विशेष उच्च कोटि की साधना विधि दी जा रही है जोकि बहुत दुर्लभ है | इसमें हम यह नहीं कहते कि आप कोई गुरु न बनायें पर यह जरूर कहते हैं कि सही बनायें | संत लोग ज्ञान और अंधकार दूर करने के लिए ही ज्ञान व दीक्षा देते हैं | उनके मन में मैंने कभी कोई लालच नहीं देखा | कई लोग कहते हैं कि गुरु को दक्षिणा देनी चाहिए | मैं कहता हूँ कि जिसने आपको इस योग्य बना दिया कि आप अपना व दूसरों के जीवन में परिवर्तन ला सकें, ऐसे महान व्यक्तित्व को आप क्या भेंट करेंगे | कहते हैं गुरु मृत्यु के देवता होते हैं | वह शिष्यों के दंभ, अहम्, अज्ञान और विकारों को मृत्यु देते हैं | जिस शिष्य में यह दोष नहीं मिटे उसके गुरु को गुरु मानना शायद उचित नहीं | क्योंकि ज्ञान की सीढ़ी यहीं से शुरू होती है | जो शिष्य गुरु तत्व का निरादर करता हो, बड़ों का सम्मान न कर पाये वो अपने गुरु का भी अनजाने में निरादर कर बैठता है | गुरु समाज में बुराई के खात्मे के लिए ही शिष्य को बागी बनाते हैं अपने स्वार्थ के लिए नहीं | इसलिए शिष्य को भी मर्यादावान होना चाहिए | अपने गुरु के सम्मान के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए |
इस गुरु पूर्णमा की आप सभी को हार्दिक मंगल कामनाएं |
आपका अपना
नागेन्द्रानंद |
साधना
इस साधना को करने से ज्ञान मार्ग स्वयं प्रदर्शित हो जाता है | साधक को सही गुरु की शरण मिल जाती है | जो साधक गुरु बना चुके हैं उनके लिए भी यह साधना ज्ञान का नया रास्ता खोल देती है | आदि गुरु महादेव जी को नमस्कार करते हुये यह साधना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह मन के भटकाव को रोक देती है, मन शांत हो सही दिशा में चल पड़ता है |
साधना सामग्री – आपके पास सफ़ेद या पीले वस्त्र होने चाहिए, आसान, पुष्प, गंगा जल या दूध मिश्रित जल, दीपक, रुई आदि धूप, शुद्ध पारद शिवलिंग या फिर नजदीक के किसी शिव मंदिर में भी पुजा की जा सकती है | भगवान शिव या अपने अपने गुरु महाराज जी का चित्र भी रख लें | भोग के लिए फल, मिठाई, मौली, वस्त्र पुजा के लिए, गुरु अर्पण के लिए अक्षत, जनेऊ, एक नारियल और 11 रुपये दक्षिणा आदि | साधक अपनी इच्छा अनुसार यथाशक्ति पूजन षोडशउपचार या पंचौपचार भी कर सकते हैं |
दिशा – उत्तर ठीक है |
आसन कोई भी ले लें |
ध्यान – हाथ में पुष्प ले गुरु का ध्यान करें अगर गुरु नहीं हैं तो भगवन शिव का गुरु रूप में ध्यान करें |
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम,
द्दन्द्दातीतं गगनसदृशं तत्वम्स्यादिल्क्ष्यम |
एकं नित्यं विमलमचलं सर्व्धिसाक्षिभूतम,
भावतीतं त्रिगुनरेहितं सद्गुरुं तं नमामि |
आसन के लिए बाजोट पर वस्त्र बिछा कर उसपर पारद शिवलिंग और जो भी मूर्ति अथवा चित्र हो स्थापित करें | फिर ध्यान मंत्र पढ़ते हुये पुष्प अर्पण करें | आसन के लिए एक पुष्प अर्पण करें | फिर गुरु चरणों का ध्यान करते हुये चरण धुलायें | एक आचमनी जल चढ़ाएं | फिर चन्दन गंधादि लगायें | पुष्प अर्पण करें | नैवेद्य आदि अर्पण करें | साधक चाहे तो किसी भी पुस्तक से पुजा अपनी सुविधा अनुसार मंत्रो से भी कर सकता है | जो मंत्रोउचार न कर पायें तो इसे सादे तरीके से कर लें | शिवार्पण या सद्गुरु अर्पण आदि बोल के सामग्री चढ़ा दें तो भी पूजन हो जाता है | पूजन हमेशा भाव प्रधान होता है | मैं चाहता तो यहाँ गूढ़ मंत्रो का उल्लेख भी कर सकता था | यह सभी नए और पुराने साधकों के लिए है जो पूजन विधियों से अंजान हैं | क्योंकि हर शिष्य गुरु के समक्ष एक अंजान बालक ही होता है | लिखा भी उसी पेज पर जाता है जिसपे पहले कुछ लिखा न हो | अतः आपको जो पूजन विधि उचित लगे, अपना लें | इस पूजन विधि को एक नए व अंजान साधक को ध्यान में रख कर लिखा गया है | मंत्र न्यास आदि से इस साधना को मुक्त रखा गया है ताकि नए साधक को असुविधा न हो | फिर भी आप गुरु को अपने शरीर में ध्यान करते हुए मानस पूजन आदि भी कर सकते हैं | अंत में गुरु को भोग जो भी आप घर में खीर मिठाई आदि बनाते हैं के अर्पण के बाद आचमन कराकर नारियल मौली बांध के 11 रुपए दक्षिणा के साथ चढ़ा दें | बाद में वह शिव मंदिर में अर्पण कर दें क्योंकि गुरु शिव रूप ही होते हैं |
मंत्र जप – आप निम्न मंत्र का 21 माला जप करें | जप के पश्चात “कृत्वा जपं गुरु अर्पणमस्तू” बोलते हुये हाथ पर जल लेकर गुरु चरणों में अर्पण कर दें |
मंत्र
|| ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं नमो भगवते विश्व गुरवे नमः ||
|| Om Shreem Hreem Kleem Namo Bhagwate Vishv Guruve Namah ||
गुरु नमस्कार
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरूर देवो महेश्वरः,
गुरु: साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः |
नोट : आप अगर इस साधना में पारद शिवलिंग का उपयोग कर रहे हैं तो शुद्ध पारद शिवलिंग का ही उपयोग करें|
ॐ