अखंडानन्द जी के जाने के करीब महीने बाद शिवरात्रि थी | हम सभी गुरु भाइयों ने अखंडानन्द जी के लिए भंडारा किया और शिवरात्रि की पूजा उनकी आत्मा की शान्ति के लिए की और शाम के वक़्त मेरे दिल में ख्याल आया कि इस बार कुछ खास करना चाहता था इसलिए मैंने हुस्नचन्द जी से सलाह की और कहा इस बार कोई अद्वितीय चीज का निर्माण करना चाहता हूँ और ये सोचकर महामृत्युंजय विजय कवच बनाने के इरादे से हम एकांत में बैठकर यंत्र निर्माण करने लगे और एक दिव्य सन्देश से कवच का निर्माण किया और हुस्नचन्द जी को साथ लेकर पूरी रात्रि शिवलिंग पर अर्पण करके 4 पहर का पूजन किया और सुबह 4 बजे हवन किया | हम पूरी रात्रि सभी गुरु भाई जाग रहे थे | सुबह स्नान के बाद गुरु पूजन कर सभी अपने अपने घरों को चले गये | मैंने हुस्नचन्द जी से कहा, कवच तो हमने बना लिया है मगर यह कैसे पता चले कि यह काम भी करता है, तो उसने कहा गुरु जी इस के लिए भी कोई रास्ता निकाल देंगे | तभी वे किसी के घर गये | वहाँ एक औरत 8 साल से बिस्तर पर पड़ी थी, आजमाने के लिए उसे कवच पहना दिया | वो तो बिस्तर से हिल भी नहीं पा रही थी | घर वाले उसकी मृत्यु मांग रहे थे मगर कवच पहनने के कुछ दिन बाद ही वो अच्छी भली हो गई और बिस्तर से उठकर सभी काम खुद करने लगी और गुरु मंदिर में आकर माथा टेकने लगी | हम बहुत खुश थे कि गुरु जी ने हमे निमित बनाकर बहुत ही अद्वितीय कवच प्रदान किया है |
कुछ दिन पश्चात यानी चैत्र नवरात्रों में लक्ष्मी साधना करने के लिए मन बना लिया और हुस्नचन्द जी मेरे साथ ही थे | रोज नवरात्रों में 221 माला जप कर लेते थे और रात्रि 3:30 तक साधना में बैठते | शरीर जरुर थक जाता मगर हिम्मत नहीं थकती और साधना के रिजल्ट भी अच्छे निकलते | सभी साधक मानते हैं कि लक्ष्मी एक सौम्य साधना है, हम भी मानते हैं मगर इसमें अनुभव कुछ ऐसे हुए जिन पर यकीन होना मुश्किल लगता है | सप्तमी का दिन था, मैं साधना से दिन के अढाई बजे उठा और साधना कक्ष का दरवाजा बंद करके सामने ही बैठ गया | चाये आ गई और मैं और हुस्नचन्द जी चाये पीने लगे | हाथ मुंह धोकर मैं अभी कमरे में गया ही था कि देखा तो मेरे आसन पर ही एक बहुत बड़े नाग की केंचुल (कंज )पड़ी है, करीब 9 फीट लम्बी और मोटाई में काफी थी | रंग सुनहरी लगता था | मैंने बाहर आकर इस बारे में हुस्नचन्द जी से कहा | लेकिन हम सामने बैठे थे, अन्दर कोई भी गया नहीं, अभी दस मिनट पहले ही मैं बाहर आया था, यह कहाँ से आ गई | लक्ष्मी के गण नाग होते हैं, जब आप खास साधना करते हैं तो जरुर आते हैं | एक राज पूजा कमरे का मुझे मालूम था, शायद वो हो क्योंकि जब भी आस पास के गुरु भाई साधना करने के इरादे से आते तो पूजा कक्ष में ही सो जाते थे | अब किसी को कुछ कह भी नहीं सकते थे | हुस्नचन्द जी ने कई बार कहा भी मगर वो नहीं माने | उसने कहा तुम खुद तो कुछ करते नहीं हमे भी नहीं करने देते | ऐसा आये दिन होता रहता था | एक रात गुरु जी से इस बारे में विनती की | उन्होंने कहा इसका इलाज मैं करता हूँ और दुसरे दिन जब गुरु जी आये उनके हाथ में एक 7 फीट का नाग था और उन्होंने उसे पूजा रूम में छोड़ दिया और कहा अब यहाँ अगर ये जबरदस्ती सोने की कोशिश करेंगे तो यह नहीं सोने देगा | हम दोनों बहुत खुश थे इस तरकीब से | पूर्णिमा को साधक आये और हमेशा की तरह उसी कमरे में सोने लगे | हुस्नचन्द जी ने उन्हें कहा भी, मगर वो कहने लगे तुम दोनों तो इसी कमरे में हो और वो हमेशा की तरह सो गये | रात्रि कोई 1 बजे के करीब नाग सोये साधकों के उपर जा चढ़ा | पहले तो किसी को कुछ नहीं पता लगा, जब एक साधक धर्मपाल के पेट के उपर से निकला तो उसने बत्ती जगाने को कहा और देखते ही सभी साधक डर से साथ वाले कमरे में जा सोये | हुस्नचन्द जी भी हंस रहे थे | गुरु जी ने यह इलाज ठीक किया | शायद वो होगा मैंने सोचा और केंचुल को संभाल कर रख लिया और साधना में लग गया |
रात्रि को हुस्नचन्द भी पास ही आसन पर बैठे थे मगर 12 बजे के बाद एक बहुत बड़ा सफ़ेद रंग का नाग पता नहीं कहाँ से प्रकट हो गया | मैं तो ध्यान में था लेकिन हुस्नचन्द देख रहे थे और धीरे धीरे नाग ने मुझे लपेटा मार लिया | मुझे चमड़ी पर ठंडा सा फील हो रहा था और रोंगटे खड़े हो गए थे | मैं साधना हमेशा धोती और पीताम्बर में ही करता था | मेरे कंधे के थोड़ा नीचे तक उसका कुंडल था और सिर पर फन की छाया | हुस्नचन्द देख कर गुरूजी से विनती कर रहा था | जब भी साधक ऐसी हालत में हो तो क्या कर सकता है, मैंने भी उठना उचित नहीं समझा | इसलिए जब जप पूर्ण हुआ तब भी मन्त्र जपता रहा |
सुबह होने को थी, हुस्नचन्द जी कह रहे थे अब नहीं बचता ये, मगर गुरु कृपा, 4 बजने से पहले ही उसने धीरे धीरे अपना लपेटा खोल लिया और धीरे से बाहर जाते ही अदृश्य हो गया | हुस्नचन्द उसे बाहर तक देखने गये और जैसे ही मैं उठा उसने कहा आज तो मैंने सोचा नाग खा लेगा तुम्हे, गुरूजी से सारी रात विनती करता रहा मैं | मैंने कहा गुरूजी के होते साधकों को कुछ नहीं हो सकता और दुसरे दिन अष्टमी को साधना संपन्न हुई और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिला | उन्ही दिनों बाबा रामनाथ जी का जिक्र चल पड़ा जो शुन्य विद्या के सिद्धहस्त आचार्य थे | सिद्धियाँ तो उनके सामने नृत्य करती थी | हुस्नचन्द जी ने उन्ही के दिशा निर्देश में साधनाएं संपन्न की थी | बहुत ही पहुंचे हुए सिद्धपुरुष और नाथ सम्प्रदाय के महान योगी थे | मैं भी उनसे मिला हूँ अभी 2009 में ही वो देह त्याग के सिद्धाश्रम में चले गये | ऐसे महान साधक के जीवन पर रौशनी जरुर डालना चाहूँगा क्योंकि बहुत कम मिलते हैं ऐसे सिद्धपुरुष | अगले लेख में बाबा रामनाथ एक महान विभूति पोस्ट करूँगा | (क्रमशः)
नागेंद्रानंद