समर्पण —-4


जब मैं वहाँ रह रहा था तो कुछ दिन के बाद बहुत बीमार पड गया | उठकर  बाहर गया और बेहोश सा होकर गिर गया, ऊपर से बारिश आ गई | पूरी रात पड़ा रहा,  सुबह शरीर ठंडा सा हो गया | जब मुझे होश आया तो अपने आपको हॉस्पिटल में पाया और वोही सफ़ेद वस्त्रों में मेरे पास बैठे थे और कहने लगे- मिस्त्री, लो संतरा खाओ | मैंने कहा- सेठ जी मैं आपको नहीं जानता | आप कहाँ से आते हो और अचानक गायब कैसे हो जाते हो और वो हंस पड़े और कहा- मैं तो तुम्हे कब से जानता हूँ | मैंने हॉस्पिटल का बिल दे दिया है,  तुम ठीक होकर वापिस चले जाना | वहाँ से आकर बाबा जी ने एक बाबा बालक नाथ जी का मंदिर गाँव वालों की मदद से बनाया और वहां नजदीक के गाँव कट्टा शबोर में रहने लगे और भिक्षा के लिए आस पास के गाँव में आया जाया करते थे | एक दिन हुस्न चन्द जी के पास आये और हुस्न चन्द जी ने चाय के लिए अन्दर बुला लिया और वो जैसे ही अन्दर आये तो पूज्य गुरुदेव जी की फोटो देख कर उछल पड़े, अरे ! यह कौन है? यह सेठ जी ने तो मेरी कई बार ऐसे ऐसे मदद की है तो हुस्न चन्द कहने लगा, यह सेठ नहीं हमारे गुरूजी हैं और अखंडानन्द जी की आँखों में आंसु आ गये और कहने लगे-  मैं इन्हे पहचान ना सका | अभी तक सेठ जी ही मानता रहा | मुझे इनसे मिलना है, मुझे कृपा इनसे मिलाएं और उन्ही दिनों चंडीगढ़ में शिविर था, गुरु जी आये हुए थे और हुस्न चन्द अखंडानन्द जी को वहां ले गया और गुरूजी से मिलाया | अखंडानन्द गुरूजी के कदमो पर गिर कर फूट फूट कर रोने लगा | गुरु जी ने अति स्नेह से उसे उठाया और कहा- मिस्त्री कैसे हो और पूज्य श्री ने अपने गले से माला उतार कर अखंडानन्द जी के गले में पहना दी और उसे दीक्षित किया | ऐसे महान गुरु जी के हम शिष्य हैं जो हर पल शिष्य की रक्षा करते हैं और अखंडानन्द जी गुरु मंदिर में ही रहने लगे | अपना नित्य कर्म करना और भजन और साधना | ऐसा नहीं था कि उन्होंने कुछ नहीं किया था, वो भी साबर साधनाओं में अग्रणी थे | कई प्रकार की विद्याओं के ज्ञाता थे | पहली बार हजरत सुलेमानी मैंने उन्ही से सीखी थी और नख दर्पण की सिद्धि भी मैंने और हुस्न चन्द जी ने उन्ही से सीखी थी | इसके अलावा काली साधना, शिव पार्वती और वीर साधना भी की थी और सब से बड़ी बात थी कि वो सुलेमानी तंत्र के ज्ञाता थे | उनकी शरण में रह कर हम एक एक साधना सिद्ध करते जा रहे थे | वो काफी आयुर्वेद का ज्ञान भी रखते थे | काफी वृद्ध हो चुके थे और चलने में कमजोरी फील करते थे | मैं कभी कभी उन्हें अपनी पीठ पर उठाकर गाँव के बाहर एक खेत में एक कुटी बनी थी वहाँ ले जाता | वहाँ एक नलका था, उनकी मालिश करता और स्नान के बाद वहीँ आम के वृक्ष के नीचे एक खटिया पर बिठा देता और फिर वो जो भी लिखाते, लिख लेता आयुर्वेदिक दवाइयां और जड़ी बूटियों के बारे |  शाम को हम मंदिर आ जाते और साधना करते | अखंडानन्द जी की उम्र 93 साल की हो चुकी थी | एक रात वो बहुत तंग हो गये | सुबह कहने लगे अब मैं शरीर छोड़ना चाहता हूँ , लेकिन मैंने जो विद्या की है उसका क्या करूँ, वो मुझे जाने से रोकती है तो हुस्न चन्द जी से मैंने कहा- तुम बाबा जी से सभी शक्ति और साधना कर्म ले लो तो उन्होंने मना कर दिया | उन्होंने कहा-इसने पता नहीं क्या-क्या सिद्ध कर रखा है, मैं नहीं लूँगा | 55 साल से यह तप करता रहा है | फिर हुस्न चन्द जी ने मेरी तरफ इशारा कर दिया, बाबा तुम इसे दे दो तो बाबा जी ने कहा- हाँ यह समदृष्ट है और हक़दार है और उन्होंने मुझे बैठाकर अपना सारा तपोबल मुझमें प्रवेश कर दिया और ऐसा होते ही कई शक्तियां उसी वक़्त मेरे सामने प्रत्यक्ष हो गई और बाबा जी की कृपा से मैंने पहली बार काली के मूल सौम्य रूप के दर्शन किये और सुलेमान को अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखा और वीर जो की दो तरह के थे और हनुमान जी का दर्शन किया | जो अच्छी शक्तियां थी मैंने रख ली और बाकी सभी को वचन मुक्त कर दिया | बाबा जी की देह कुछ हल्का महसूस कर रही थी | उन्होंने मुझे सभी की पूजा और भेंट के बारे में बताया और उसके कुछ दिन बाद शाम को हुस्न चन्द और मुझे बुलाया और कहा- मेरा अंतिम सन्देश ले लो और हम दोनों उनके पास नीचे बैठ गये | वो खटिया पे बैठे हमे सन्देश देते रहे और हमसे तीन वचन लेकर कहा अभी मेरा अंतिम समय नजदीक है और गाय जो मुझसे गलती से गोली के सामने आ गई थी, सामने खड़ी है तो हमने गहन विचार किया और दुसरे दिन बाबा जी से गौ दान करा दिया | एक बछड़े वाली गाय को शिंगार करके बाबा जी के हाथों कन्या को दान करा दिया | शाम का वक़्त था, बाबा जी ने खाना खाया और रात्रि २ बजे के करीब हम सभी को जगाया और कहा- मैं अभी चलता हूँ , वो देखो मुझे लेने आ गये हैं मगर शिव जी ने उन्हें सभी को भगा दिया है और उन यमदूतों को कह रहे हैं कि यह मेरे मंदिर में प्राण छोड़ रहा है, इसलिए यह शिव लोक का अधिकारी है और सभी यमदूत चले गये हैं और अब शिव जी स्वयं मुझे लेने आये हैं,  मेरी तैयारी कर दो | हमने बाबा जी से कई बातें की और दिशा निर्देश लिया और पूछा क्या करें | तब उनके कहने पर वहाँ गाय के गोबर से लीप दिया और उनके कहने पर एक तेल का दिया जगा दिया और फिर उन्होंने कहा अब मैं जाने लगा हूँ, आप सभी को जय गुरुदेव और अंतिम आशीर्वाद दिया, सबसे मिले और कहा अब मुझे उठाकर इस जगह लिटा दो जहाँ लीप दिया था | जैसे ही अखंडानन्द जी को उस जगह लिटाया, उन्होंने प्राण छोड़ दिए और हम सभी उनको भरे हुए ह्रदय से विदाई देकर गुरूजी से प्रार्थना कर रहे थे कि वो इन्हे शांति दें | यह बात लिखते हुए आज मुझे सभी याद आ गया और मेरा मन भर आया है, बाकि अगले लेख में लिखूंगा | (क्रमशः)