भैरव साधना अर्थात भय से मुक्ति की क्रिया | आज कौन नहीं चाहता कि भय से मुक्ति पाकर निर्विघ्न जीवन जिये, पर हमारे ग्रंथ इन साधनाओं के खजाने हैं , फिर भी लोग तंत्र मंत्र से भय खाते हैं | क्यों …? क्योंकि कुछ लालची लोगों ने इन विद्याओं को अपना व्यापार बना लिया है और तरह तरह के ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले तथाकथित तांत्रिक आदि क्रिया करने वाले तंत्र के नाम पर सामग्रियों का व्यापार करने वाले इन विद्याओं का उत्थान करने की बजाये अपनी जेबें भरने में लगे हैं | जरा सी समस्या को ऐसे बढ़ा के बताया जाता है कि लोग घबरा कर कुछ भी देने को तैयार हो जाते हैं | धर्म गुरुओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी | एक से बढ़ कर एक और ज्यादातर लोग कथा सुनने के आदि हो गए और यह विद्या समय के साथ लुप्त होने के कगार पर चली गई | सद्गुरुदेव जी ने इस विद्या में प्राण फूंके और मंत्र तंत्र यंत्र विज्ञान नाम से पत्रिका शुरू की उनका यह नाम रखने के पीछे उद्देश्य भी शायद यही था | लेकिन समय के साथ यह पत्रिका भले बंद कर दी गई हो पर सद्गुरुदेव कहते थे , मैं जीवित जागृत ग्रंथ लिखता हूँ | आज उनके अनेक शिष्य, सन्यासी शिष्य इस विद्या के प्रचार में और लोक भलाई के कार्य हेतु समर्पित हैं | सद्गुरुदेव जी की सोच एक ऐसी सोच है जिसे कोई नहीं मिटा सकता क्योंकि वह काल के माथे पर लिखी एक आवर्त है जो वक़्त के साथ फिर से चमकेगी | ऐसा मैं ही नहीं वह हर शिष्य मानता है जो सद्गुरुदेव जी की प्राण ऊर्जा से जुड़ा हुया है |
भैरव साधना का सिरलेख शुरू करने से पहले सद्गुरुदेव जी के श्री चरणों में शत शत नमन करता यह कामना करता हूँ कि हे गुरुदेव आप तो हम सभी शिष्यों के ह्रदय के चमकते हुये सूर्य हैं | आप अपनी किरणों से हम सभी शिष्यों का ह्रदय प्रकाश मान कीजिये , जिससे हम अपने जीवन के सभी किस्म के भय से मुक्त हो कर आपके बताए मार्ग को अपना सकें |
उन्मत भैरव साधना
भैरव के अष्ट रूपो में से उन्मत भैरव प्रथम कहे जाते हैं | यह साधक के सर्वपक्षी विकास और भावनाओं को पूर्ण करने ,धन आदि की प्राप्ति, नौकरी , प्रमोशन आदि ,घर में प्रेम पूर्ण वातावरण और मन में उठती आशाओं को पूरा करते हैं | इस साधना से साधक का मन फूलों की तरह मुस्कुराने लगता है | जीवन से निगेटिव एनर्जी दूर होती है | नई खुशी का एहसास होता है | मन प्रसन्न रहने से मन के विकारों पर विजय मिलती है | साधना में ध्यान लगने लगता है | माँ कामाक्षा के साथ इस भैरव जी की पूजा की जाती है | यह शिव का मनमोहक रूप साधक को हर प्रकार की विद्या और तरक्की देने में सक्षम है |
साधना कैसे करें
इस साधना को जिस दिन करें , उस दिन लहसुन , प्याज का उपयोग घर में ना करें |
- किसी लोटे में जल भर कर उसमें फूल पत्तियां डाल कर दुआर पे स्थापित कर दें | साधना के बाद वह जल घर में छिड़क दें , अथवा किसी पौधे में डाल दें |
- फिर एक बाजोट पर एक कुंकुम से स्वास्तिक बना कर उस पर नीले रंग का वस्त्र बिछा दें जिसपर भैरव जी का कोई भी सुंदर चित्र स्थापित कर दें |
- एक बात हमेशा याद रखें , फूल इस पूजा में ताजे लें , बासी अथवा मुरझाये फूल कभी उपयोग न करें |
- पंचौपचार से पूजन करें |
- भोग में मिठाई शुद्ध घी की लें | एक पान के पत्ते पर लौंग , कपूर, सुपारी, इलायची आदि रख कर भैरव जी को भेंट दें |
- एक पात्र में दही लें और भैरव जी को अर्पण करें | नीले रंग का वस्त्र सवा मीटर लें , उसे भी भैरव जी की मूर्ति अथवा चित्र पर चढ़ा दें |
- साधक उतर दिशा की ओर मुख करें | आसन नीले रंग का लें |
- तेल का दिया जलता रहना चाहिए |
- बिना माला के सवा घंटा से लेकर २.१५ घंटे तक मंत्र जाप करें | मानसिक मंत्र जाप करें | साधना समय रात ८.१५ से लेकर ११.३० तक का शुभ है |
मंत्र
|| ॐ भं भं श्री उन्मताये नमः ||
|| Om Bham Bham Shree Unmataaye Namah ||
साधना के बाद समस्त पूजन सामग्री जो आपके पूजन किया है उसी नीले वस्त्र में बांध कर जल प्रवाह कर दें अथवा भैरव जी के मंदिर में चढ़ा दें | इस प्रकार यह साधना सफल होती है |