जब ख्वाजा जी एक बार अल्ला से मिलने गए तो लोगों ने समझा कि उन्होंने देह त्याग कर दिया है | तब उनको दफनाने के लिए ले जाया गया लेकिन कब्र में उन्होंने आंखे खोल दी और जिंदा हो गए, तब से उनको जिंदा पीर के नाम से लोग जानने लगे | जिंदा पीर की साधना हर किस्म के भय के बंधन काट देती है | चाहे वह अकाल मृत्यु का भय हो या रोज जीवन में घट रही ज्ञात अज्ञात घटनाओं की वजह से उत्पन्न भय हो या साधना के वक़्त अनचाहा भय हो | यह साधना हर तरह से रक्षा कवच की तरह साधक की रक्षा करती है | हर किस्म की तांत्रिक बाधा से भी रक्षा करती है|
इसे कोई भी कर सकता है चाहे उसने दीक्षा भी न ली हो वो भी इसे कर सकता है | क्योंकि “पवन गुरु पानी पिता माता धरत म्हथ, दिवस रात दो दायी दायाँ खेले सगल जगत” पवन गुरु है अर्थात शब्द, जो गुरु मंत्र देते हैं, वह पवन का रूप है अर्थात गुरु है | पानी अर्थात जल को पिता की उपाधि दी गई है | जल के बिना किसी का भी निर्वाह नहीं है | इसलिए शास्त्र कहते हैं कि पिता और गुरु में अंतर नहीं करना चाहिए | इसलिए जलदेव स्वयं गुरु रूप हैं, इस नाते इसे कोई भी कर सकता है | माता की उपमा धरती माता को है | बहन भरा रात और दिन माने गए हैं | सारी सृष्टि में यही चलता है | जो इस बात को समझ लेता है वह उसमें लीन होने की कला सीख लेता है | उसे ही सन्यासी कहा गया है | क्योंकि उसका मोह संसार से भंग होकर निराकार में ध्यान की अवस्था में पहुँच जाता है | जीवन में अनगिनत ऐसे क्षण हैं जब इंसान भय के वश होकर चेतना खो देता है | बहुत बार इसी भय के कारण साधना भी खंडित हो जाती है | जरा सी सिहरन से साधक सेहन उठता है | कई बार अप्सरा या यक्षिणी आदि की साधना के वक़्त थोड़ा सा आवाज आने पर एक दम सीधे होकर बैठ जाते हो और फिर धीरे से एक आँख खोलकर देखते हैं कि शायद वह आ गई | यह साधना का आयाम नहीं है यह एक बहुत बड़ी कमी है जो भय की वजह से उत्पन्न होती है | इसी तरह रास्ते में चलते वक़्त बहुत बार ऐसा लगता है जैसे कोई पीछे चल रहा हो तो भी भय की वजह से इंसान डर जाता है | बहुत बार घर में तांत्रिक आक्रमण होने से घर के सदस्यों को दबा सा पड़ने लगता है | ऐसा लगता है जैसे छाती पर किसी ने दबाव डाला हो | उस वक़्त मुख से आवाज भी नहीं निकलती | यह बहुत लोगों के साथ अक्सर हो जाता है | इसके अलावा बच्चे नजर में आ जाते हैं या छाया आदि का प्रभाव हो जाता है | यह साधना इन सभी विघ्नों को सेकंड्स में दूर कर देती है | यह साधना मेरे पिता ने मुझे दी थी | इसका जहां भी मैंने प्रयोग किया सफल हुई | आप भी एक बार आजमा कर देखें |
विधि
इसे शुरू करने से पहले किसी नदी, कुँए या तालाब आदि पर जाएँ | एक दीप जगा कर दलिया बनाकर या कच्चा उस कुँए में, नदी अथवा तालाब में डाल आयें और साधना में सफलता की विनती करें फिर घर आकर किसी भी हकीक माला से 11 माला जप करें | यह कर्म 11 दिन तक करें और अंत में एक बार फिर दलिया या पीले मीठे चावल बनाकर नदी अथवा कुँए, तालाब आदि पर उसी तरह दे आयें | आपका मंत्र सिद्ध हो जाएगा और काम करने लगेगा | इस साधना के लिए दिशा पश्चिम ठीक है | वस्त्र कोई भी चल जायेंगे, आसन कोई भी ले लें | साधना के वक़्त अगरबत्ती आदि लगा लें |
प्रयोग
कैसा भी भय हो इसका मात्र जप करने से समाप्त हो जाता है | अगर किसी को डर आदि लगता हो तो जल को अभिमंत्रित करके पिला देने से उसका भय हट जाता है | अगर बच्चे को नजर छाया आदि हो तो जल अभिमंत्रित कर चम्मच आदि से पिला दें, वह ठीक हो जाएगा | किसी रोग का भय हो तो जल अभिमंत्रित कर पियें | यह बहुत बार आजमाई हुई साधना है और बहुत ही प्रभावकारी भी | इसे किसी भी साधना को करने से पूर्व पढ़ लिया जाए तो साधना काल में पूर्ण रक्षा होती है | इसे पढ़ कर जल चारों और छिड़क देने से कोई विघ्न नहीं आता | सफर के वक़्त पढ़ने से हर तरह की रक्षा होती है | यह मंत्र साबर अढ़ाईया मंत्र की श्रेणी में आता है | इसका असर अचूक है |
|| मंत्र ||
बिसमिलाह
गुरु सिमरा गुरु साईं सिमरा ,
सिमरा बाबा जिंदा ,
हजरत मेरा पीर है , तोड़े तबक जंजीर है |
ख्वाजा जिंदा पीर है |